Wednesday, January 1, 2014

कर्म की याचना



रोजाना आँखों से देखे
हम तुम सपने हज़ारों
सपने तो देखे है सभी
पर क्या सच होते है कभी
खुशियों का क्या करना
वो तो बेशुमार है
सवाल तो है ये खड़ा
क्या तुम्हारा दिल है बड़ा
दूर खड़े तुम रोते हो
अपने अंश को हर श्ण ढूंडते हो
आओ ज़रा आँखें तो खोलो
सिर्फ बगईओं में ना खिलते फूल
सुगंधित पर वो भी होते है
दिल तो सबका दुखता है
पर क्या आगे कुछ तुम करते हो
कभी तो हम सब कर्म करे
कब तक शर्म से मरे
किलकारियों की गूंज को
मातम में ना बदलने दो
ए ज़िंदगी अब तो मुझे कुछ करने दो

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